यह औषधि दमा की समस्याओं को कम समय में खत्म करती है। दमा में होने वाली परेशानियां जैसे खांसी, श्वास ठीक से ना आना, रात में होने वाली खांसी और सीने में जमा हुआ कफ आदि को ठीक करता है।
इस चूर्ण से पुरानी से पुरानी बवासीर पूरी तरीके से ठीक हो जाती है, और फिर इसे दोबारा कभी नहीं बनती क्योंकि यह जड़ से ठीक कर देता है। बवासीर तो ऑपरेशन करके भी ठीक कर लेते हैं लेकिन उससे फिर से हो जाती है, लेकिन इससे जो जड़ से खत्म होती है तो फिर दोबारा नहीं होती।
Forest garlic oil जंगली लहसुन का तेल
सतपुड़ा के जंगल में एक सिंगल काली का लहसुन पाया जाता है। इस लहसुन का अर्क सरसों के तेल में निकालकर एक तेल तैयार किया जाता है, जो सिर दर्द में बहुत अच्छा काम करता है, जब भी सर दर्द हो, केवल स्मेल करने से ही सर दर्द बंद हो जाता है।
गैस एसिडिटी के लिए हम त्रिफला चूर्ण (आंवला, हरड़, बहेड़ा) का बेस लेकर कई अन्य औषधीय मिलाकर एक चूर्ण तैयार करते हैं, इसका रात में सेवन करने से सुबह तक पेट साफ हो जाता है। यह चूर्ण 30 दोनों का रहता है, लगातार 30 दिनों तक इस चूर्ण का सेवन करने से पाचन तंत्र बहुत मजबूत हो जाता है, जिससे 2 से 3 साल तक ईनो और गैस की टेबलेट जैसी चीज लेने की जरूरत नहीं पड़ती।
पचमढ़ी में एक प्रकार का सूई नींबू पाया जाता है, जिसका आकार 10 से 12 सेंटीमीटर तक हो जाता है। इस नींबू की विशेषता यह है इसमें साइट्रिक एसिड की मात्रा बहुत अधिक होती है। यदि इसमें लोहे की कील डाल दी जाए और एक सप्ताह बाद इसे काटा जाए, तो कील गल जाती है। फिर इस नींबू के साथ-साथ कई अन्य जड़ी बूटियां को मिला कर एक पाउडर तैयार किया जाता है, जो एक महीने में 3 से 4 किलो एक्स्ट्रा फैट या वजन कम करने में मदद करता है।
पचमढ़ी के जंगलों में एक गुड़मार नाम का पत्ता पाया जाता है, इस पत्ते को खाने से 12 घंटे के लिए मीठे का स्वाद नहीं आता है, फिर शक्कर मिट्टी की तरह और चाय गरम पानी की तरह लगती है।
जंगलों से आंवला एकत्रित करके, आंवले को धोकर कद्दूकस करके उसमें शहद मिलाकर यह आंवले का मुरब्बा तैयार करते हैं, जो स्वाद में काफी अच्छा होता है और बच्चों को बेहद पसंद आता है।
अर्जुन की छाल से चूर्ण तैयार किया जाता है, इसमें अर्जुन के साथ-साथ अग्निमथ, श्योनक, पाटला, गम्भारी, गोक्षुर, पुनर्नवा आदि औषधीय मिलाई गई है। यह औषधि हृदय रोग, लिवर, कैंसर, तनाव, कमजोरी आदि में राहत दिलाती है।
यह चवनप्राश मार्केट के च्यवनप्राश से काफी अधिक शक्तिवर्धक है क्योंकि मार्केट के च्यवनप्राश को मीठा करने के लिए चीनी या गुड़ का उपयोग किया जाता है, लेकिन इसे हम छोटा मक्खी के शहद से तैयार करते हैं। एवं पचमढ़ी का पहाड़ी शिलाजीत के साथ-साथ ब्राह्मी, अश्वगंधा, सफेद मूसली, काली मूसली, शतावर, मुलेठी, कौंच के बीज, गिलोय आदि ताकत वाली औषधीय का उपयोग करके इस चवनप्राश को तैयार किया जाता है।
पचमढ़ी के जंगलों में एक जंगली प्याज पाया जाता है जो की वजन में 30 से 40 किलो तक हो जाते हैं इस प्याज से रेशे (फाइबर) निकलते हैं जो की हड्डी में लुब्रिकेशन खत्म हो जाता है उसको वापस से तैयार करने में सहयोग करता है।